सवाल लाजमी है। फिल्म पद्मावत के मामले में सर पर पहाड़ उठा लेने वाले या फिर यूँ कहें कि हल्ला मचाने वाले आज कहां है? देश के महान और विराट प्रतिभा वशिष्ठ नारायण सिंह की उपेक्षा करने वाले ‘तंत्र’ और सरकार पर आज सवाल वे क्यों नहीं उठाते, जो कभी फिल्म पद्मावत के लिए सड़क पर उतर आए थे। आखिर उनकी उपेक्षा और मौत का जिम्मेदार कौन है? इससे और बड़ी दु:खद बातऔर क्या हो सकती कि महान विभूति का शव एक एंबुलेंस के लिए तरस गया। धिक्कार है ऐसे नेताओं, रहनुमाओं और समाज सेवा की चोला ओढ़े ढोंगियों पर?
आज की ऐसी तंत्र को आग लगे। 1972 में अमेरिका से लाखों की तनख्वाह वाली नौकरी को लात मार देश सेवा के लिए वे भारत लौटे, लेकिन उनके महत्व को सरकार को चलाने वाले ‘तंत्र’ नहीं समझ सकी। कुछ दिनों पूर्व एक वरिष्ट पत्रकार Kanhaiya Bhelari को वशिष्ठ नारायण सिंह के अनुज अयोध्या प्रसाद सिंह ने बताया था कि तत्कालीन मुख्यमंत्री लालू प्रसाद उनको बेहतर इलाज के लिए प्रतिनिधि के साथ बेंगलुरु भेजा था। तत्कालीन स्वास्थ्य मंत्री शत्रुघ्न सिन्हा ने भी रुचि दिखाई थी। फिर काफी दिनों तक उनका बेहतर इलाज नहीं हो सका। मीडिया में हो-हल्ला के बाद मुख्यमंत्री नीतीश कुमार उनके इलाज को ले कुछ सक्रिय जरूर दिखे।
लेकिन अंततः वर्तमान राजनीति से जुड़े लोग महान विभूति के न तो महत्व को समझा और न ही उनके बेहतर इलाज की तोहमत उठाई।
कोसी की आस परिवार की ओर से आपको नमन है। अश्रुपूर्ण श्रद्धांजलि जैसे शब्दों से आज सोशल मीडिया पटा पड़ा है लेकिन हमसब ने भी इस महान विभूति गणितज्ञ वशिष्ठ नारायण सिंह के लिए अपने तरफ से प्रयास नहीं किया, उनकी इस उपेक्षा पर ईश्वर को भी अफसोस होगा। ईश्वर भी सोचते होंगे कि ‘मैंने बिहार में वशिष्ठ नारायण सिंह जैसे धनी प्रतिभा को भेज कर बहुत बड़ी भूल कर दी?
सोर्स- जियो बिहार