(व्यंग्य)
सबको डर है, सबको डर है कि चुनाव में ड्यूटी न लगे,
क्योंकि यहाँ नक्सल है भाई।
ऐसे मर जाएँ, लेकिन चुनाव ड्यूटी में न मरें,
क्योंकि यहाँ तो मुआवजा भी नहीं मिलता है भाई।
इसलिए,
बंद करो मतदान, क्योकि यहाँ हो रहा अभियान,
नाम कटाने की चुनाव ड्यूटी से।
कल तक थे जो आम, आज हो गए खास,
क्योकि वे हो गए अब प्रशासन के पास ।
जब एक व्यक्ति से पूछा जाता है कि आप कौन हैं भाई, तो जबाब आता है
मैं तो प्रशासन वाला,
और आप
मैं तो फलां / चिलां वाला ;
और भाई आप
मैं तो बड़े साहब वाला और वो छोटे साहब वाले;
और आपलोग
हम तो महिला हैं भाई,
रहने दो ! सारे कदम-से-कदम मिलाकर चलने वाले वादे,
और किनारे में चुप –चाप खड़े एक भाई साहब से जब पूछा गया कि आप कौन हैं भाई, तो जबाब सुनिएगा
मैं तो आम कर्मचारी / अधिकारी हूँ भाई,
हम तो सच्चे देशभक्त / कर्तव्यनिष्ठ हैं भाई,
हम तो देश के लिए मरने-मिटने के लिए तैयार रहते हैं भाई,
हम खास नहीं हैं भाई,
क्योकि अपनी नहीं है, पहचान ऊपर भाई,
इसलिए हम आम कर्मचारी / अधिकारी हैं भाई।
सबको डर है, सबको डर है कि चुनाव मे ड्यूटी न लगे,
क्योंकि यहाँ नक्सल है भाई।
ऐसे मर जाएँ, लेकिन चुनाव ड्यूटी में न मरें;
क्योंकि यहाँ तो मुआवजा भी नहीं मिलता है भाई।
गुड्डू सिंह की कलम से.