2 दिनों से सोच रहा था कि कुछ लिखूँ, कुछ लिखूँ लेकिन कलम इजाजत नहीं दे रहा था और लिखूँ भी तो कैसे और क्या लिखूँ, लिखते-लिखते आंखों में आँसू आ जाते हैं फिर भी दिल को ढांढस बांधते हुए उन वीर भारत माँ के सपूत को मेरा एक छोटा सा नमन:-
मुझे ( यहाँ एक पत्नी अपने पति के बारे में कहती है ) मालूम है कि आज भी उनका फोन नहीं आया है आए भी क्यों, क्योंकि उनको तो मेरे लिए टाइम ही नहीं है, कम-से-कम “वैलेंटाइन डे” पर भी तो फोन करना चाहिए, कोई इमेज ही व्हाट्सएप कर देते, पिछली बार तो मेरे द्वारा बनाया हुआ तिरंगा बैंड ही आपने भेजा था लेकिन …………..कहाँ। उनको तो देश सेवा के अलावा कुछ भी दिखता ही नहीं है। जब घर भी आते तो हमेशा अपनी आम बोलचाल में भी अपने वतन का ही जिक्र किया करते थे, अरे मैं फोन ना आने के बारे में सोच-सोच कर…………….. कहाँ चली गई, उनको याद करते-करते ही सासू माँ से पूछ बैठी उनका फोन आया या नहीं। सहसा याद आया कि ससुर जी भी घर में ही है, धीरे से अपनी नन्हीं सी पड़ी (बेटी) को सुला कर मैं जैसे ही सासु माँ की और बढ़ी, ससुर जी के कमरे में चल रही टीवी पर अचानक एक पत्रकार की आवाज मेरे कानों तक आई कि अब तक का सबसे बड़ा आतंकी हमला। जम्मू कश्मीर के पुलवामा में आज सीआरपीएफ के काफिले पर एक बहुत बड़ा आतंकी हमला हुआ है और कई जवानों के शहीद होने की खबर आ रही है। आवाज सुनते ही कदम यूँ ही रुक गए। मन में उथल-पुथल होने लगी, वही दीवार के सहारे कान लगाकर टीवी की आवाज सुनने लगे लगातार पत्रकार के द्वारा बार-बार कवरेज के बाद खुद को रोक नहीं पाई और टीवी वाले कमरे की ओर बढ़ी, कभी टीवी देखती, कभी मन को तस्सली देती, तभी पत्रकार द्वारा बताया गया कि 40 से अधिक जवानों के शहीद होने की खबर है और अचानक वह हुआ जिसकी मैंने कभी कल्पना भी नहीं की थी मेरे द्वारा भेजा गया वह तिरंगा सड़क पर गिरा दिखा जिसे वो (अपने पति के बारे में कह रहीं हैं) हमेशा अपने हाथों में लगाए रखते थे, वो सड़क पर गिरा था, फिर मैं ना जाने कब सिसकते-सिसकते बेहोश हो गई। शत-शत नमन उस पिता को, शत-शत नमन उस माँ को जिसने अपने दिलेर बेटे को जन्म दिया और शत-शत नमन उस अर्धांगिनी को, जिसने अपने पति को खोया ।
“किसी माँ ने जवान बेटे को खोया,
किसी बहन ने भाई को खोया,
किसी बाप ने बेटे को खोया,
लेकिन मैंने(अर्धांगिनी) तो अपना सुहाग खोया”।
यहाँ अर्धांगिनी (खुद एक पत्नी/औरत) अपने पति के शहीद होने पर खुद को रोक नहीं सकी और अपनी करुणामई शब्दों इस तरह बयां की।
जय हिन्द, वंदे मातरम।।
आशुतोष सिंह
(यह लेखक/कवि के स्वतंत्र विचार हैं।)
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