न ज़मीन चाहिए, न आसमान चाहिए,
इन्हें तो बस थोड़ा सा सम्मान चाहिए॥
इन्हें चाह नहीं खोखले इबादतों की,
इन्हें जरूरत नहीं दिखावटी खुशामदों की,
ज़रा पढ़ के तो देखिये इनकी चाहतों को,
इन्हें तो आपकी आँखों में, अपने लिए,
बस प्यार के कुछ निशान चाहिए॥
न ज़मीन चाहिए, न आसमान चाहिए,
इन्हें तो बस थोड़ा सा सम्मान चाहिए॥
ऊँची अट्टालिकाएं इन्हें लगती नागवार,
फीके लगते इनको आलीशान बाज़ार,
जहाँ न हो, दीवारें अपनों के बीच,
मिटटी का सही,
इन्हें छोटा सा मकान चाहिए॥
न ज़मीन चाहिए, न आसमान चाहिए,
इन्हें तो बस थोड़ा सा सम्मान चाहिए॥
ज़रा महसूस तो कीजिये इनकी सर्द आहों को,
ज़रा टटोल कर तो देखिये, इनकी दर्द भरी निगाहों को,
बस यही कहती हैं, इनकी आँखों की नमी,
कि इन्हें, नहीं घर का कोना बियाबान चाहिए॥
न ज़मीन चाहिए, न आसमान चाहिए,
इन्हें तो बस थोड़ा सा सम्मान चाहिए॥
जिन्हें पापा-दादा बोल के बोलना सिखाया,
उनकी बोलों में प्यार की तान चाहिए,
अपने ग़मों की परवाह किये बिना,
जिन पर खुशियाँ वार दी,
उनके दिलों में थोड़ा सा स्थान चाहिए॥
इन्हें न झूठी शान चाहिए, न कीमती सामान चाहिए,
इन्हें तो संवेदनशील समाज की एक इज्ज़त भरी अज़ान चाहिए॥
न ज़मीन चाहिए, न आसमान चाहिए,
इन्हें तो बस थोड़ा सा सम्मान चाहिए॥
रौनक
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