दानवता

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क्‍या दानवता का चरम नहीं या मानवता का अंत है?
इस सभ्‍य समाज के दामन पर पशुता का कलंक है!
सभ्‍य समाज की वेश-भूषा में, आचार-विचार प्रपंच है!
संवेदनहीन समाज का, क्‍या यही सच्‍चा मंच है?

मूर्धन्‍य समाज को, शर्म से सर न उठाना चाहिये,
अबला बाला की वेदना से, क्रंदन करना चाहिये,
हाँ द्रोपदी की आवरू भी, इसी समाज ने उतारा था,
पर याद है, सम्‍पूर्ण भारतवर्ष ने उसका हिसाब चुकाया था।

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मत भूल नर, कि नारी ही है जन्‍म देती सृष्टि को,
है पालती, दुलारती, तृताप हरती समाज की,
पर क्‍या मिला इस नारी को, जो सजाती इस धरा को,
वेदना, क्रंदन, पुकार और चीख उर में पालती।

देवत्‍व का है वास वहाँ, पूजी जाती नारी जहाँ,
पर दानवत्‍व का वास है, आज इस समाज में,
क्‍यों मूक है शासन यहाँ, सभ्‍यता के आन में,
या मौन है सभ्‍य समाज, अपने तथाकथित शान में।

न सभ्‍य वेश-भूषा पाकर, होता मानव सभ्‍य है,
आचार-विचार में संवेदना ही, मानवता का सत्‍य है,
इक ओर उन्‍नत समाज का दंभ, भरते हम यहाँ,
पर वेदना संवेदना से शून्‍य, क्‍यों हो रहे यहाँ???

उपर्युक्त पंक्तियाँ धबौली, सहरसा के यादवेन्‍द्र सिंह जो भारत सरकार के गृह मंत्रालय में अनुभाग अधिकारी के पद पर कार्यरत हैं ने मानवता को शर्मसार करने वाली घटित घटनाक्रम के परिप्रेक्ष्य में कोसी की आस टीम को भेजा है।

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