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माँ शारदे वर दे।।
तिल तिल तमस सम,
तड़पते मनुज को,
हिम कण सम शीतल,
ज्ञान तुषार की रौ दे,
माँ शारदे वर दे।।
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अशांत अधीर,
अवसादित जड़ को ,
सागर के लहरों सी,
उल्लासित चेतन कर दे,
माँ शारदे वर दे ।।
क्या ये गलत है ?
क्या ये सही है?
इसी दोराहे पर आज मही है।
हंस वाहिनी
अपने वाहक के जैसा,
नीर क्षीर विवेक का कौशल,
जन मानस के हृदय में भर दे।
माँ शारदे वर दे ।।
अकिंचन कुमुद की झोली
गूढ़् ज्ञान से भर दे।
माँ शारदे वर दे।।
उक्त पंक्तियाँ भेलाही “सुपौल” की श्रीमती कुमुद “अनुन्जया” जो केंद्रीय विद्यालय में शिक्षक के पद पर कार्यरत हैं, के द्वारा कोशी की आस टीम को भेजी गई है।
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