मोबाइल : आखिर हो क्या तुम?
तुम किसी प्रकार के यंत्र हो,
या हमारे विनाश के षड्यंत्र हो।।
तुम मेरे समय बचत कर रहे हो,
या मेरे बचे समय भी बर्बाद कर रहे हो।।
तुम अपनों को करीब ला रहे हो,
या करीबियों को भी मुझसे से दूर कर रहे हो।।
तुम पूरी दुनिया से मुझेे रूबरू करवा रहे हो,
या मेरी अपनी भी दुनिया को तुम स्वयं में समेटते जा रहे हो।।
माना कि तुम टेलीफोन हो, तुम कैमरा हो,
तुम घड़ी, कैलक्यूलेटर, टी.वी. और इंटरनेट के साधन भी हो।।
तुम अपनों से मिलने नहीं देते हो, खुद में कमी ढूंढने के अवसर नहीं दे पाते हो,
अच्छे-बुरे समय की पहचान नहीं करने देते हो, और-तो-और मेरे गणित भी कमजोर करते जा रहे हो।।
तुम प्यार के एहसास भी करवाते हो, दोस्ती भी करवाते हो,
कई और भी रिश्ते बनवाते हो, क्षण में तुड़वा भी जाते हो।।
तुम मदद भर कर, जरूरत बनने की कोशिश ना कर,
तुम मोबाइल हो, मोबाइल ही रह स्माइल बनने की कोशिश ना कर।।
मोबाइल आखिर हो क्या तुम?
तुम किसी प्रकार के यंत्र हो,
या हमारे विनाश के षड्यंत्र हो।।
सहरसा के युवा कलमकार ने मोबाइल के बारे में उपर्युक्त पंक्तियाँ कोसी की आस टीम को भेजी है।