“प्रिया सिन्हा”
कोसी की आस@पूर्णियाँ
देखो रुपया, क्या खूब कमाल कर रहा,
सब लोगों का, क्या बुरा हाल का रहा।।
रुपया जो न हो तो यदि पास में, तो लोग मिलने से भी कतराते हैं,
और तो और सारे अपने अपनों से ही, एकदम से दूर चले जाते हैं।
किन्तु जब वही रूपया आ जाए पास में, तो देख के उसकी चमक,
अपने तो अपने पराये भी, भागे-दौड़े एवं खींचे चले आते हैं।
दिखा के अपनी चमक सबको, रुपया है भ्रमजाल कर रहा।
देखो रुपया, क्या खूब कमाल कर रहा।
ना बीबी, ना बच्चा, ना तो बाप बड़ा, ना ही बड़ा कोई भईया,
मैं ही तो हूँ यहाँ सबसे बड़ा, कहता यही हर वक्त रुपईया,
और जो मैं न रहूँ मौजूद, किसी के जिन्दगी में इक जरा भी,
तो चल ना सकेगी, किसी के भी जीवन के गाड़ी की पहिया।
जता के अपनी महत्ता,
खुद को गर्व से निहाल कर रहा,
देखो रूपया क्या खूब कमाल कर रहा।
एक तरफ महंगाई तोड़ रही कमर, सभी आम इंसानों की,
तो दूसरी तरफ दुनिया में, हो रही मान मर्यादा सिर्फ धनवानों की,
सच्चाई, ईमानदारी हार के, सिसक रही किसी कोने में,
क्योंकि रूपये के दम पर हो जाती, जीत अक्सर कुछ बेईमानों की।
सूझा के नायाब तरीका इंसान को इंसान के खिलाफ,
रुपया, इस्तेमाल कर रहा,
देखो रूपया क्या खूब कमाल कर रहा।
जिसके पास अत्यधिक रुपया, वो व्यस्त हैं उसे छिपाने में,
जिसके पास उससे थोड़ा कम, वो व्यस्त हैं सबको दिखाने में,
परन्तु गरीब लोग रह जाते हैं, व्यस्त सिर्फ अपनी ही गरीबी में,
और उनकी गुजर जाती है उम्र, सिर्फ रोटी दाल कमाने में।
रचा के ऐसा चक्रव्यूह सबका जीना,
रुपया मुहाल कर रहा,
देखो रुपया, क्या खूब कमाल कर रहा।
एक दिन रुपया ने सोचा कि आखिर क्यों हर कोई मुझ पर मरता है?
अपने परिवार, रिश्तेदार और मित्रों से नित्य-प्रतिदिन क्यों लड़ता है?
भुला के प्यार, मुहब्बत एवं छोड़ के सारी चिंताएं अपने ही प्रियजनों की,
आखिर क्यों जब देखो तब वो सिर्फ रुपया-रुपया-रुपया ही करता है?
बता के, हम सबको दोषी,
हम सबसे, रुपया सवाल कर रहा,
देखो रुपया, क्या खूब कमाल कर रहा।