वीर

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अविरल धरा पर,
कब से खड़ा है तू,
पत्थर पर्वत सा ,शायद,
हिमालय पर्वत सा,
हाथों में तिरंगा लिए,
कब से खड़ा है तू,
गंगा की धारा है,
समय का रखवाला है,
या
पवन सा मतवाला है,
शक्ति का प्रतीक है,
भक्ति की मूरत है,
या
श्रद्धा का साया है,
अविरल धरा पर,
कब से खड़ा है तू।

जय हिंद।

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स्वरचित मौलिक
करुणा सिंह कल्पना
रांची झारखण्ड।

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