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जीवन से,
जिनकी शिकायतें,
जितनी कम होगी।
आँखे उनकी,
उतनी ही कम,
नम होगी।
मन और हृदय की,
संतोष से,
जितनी अधिक पहचान होगी,
आत्मिक खुशियों तक,
पहुंचने की राहें,
उतनी ही आसान होगी।
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माना हमारी बगिया में,
फूलों की क्यारी,
थोड़ी कम है।
पर हमारे आंगन में भी,
पतझड़ के बाद आता,
बसंत का मौसम है।
माना उनकी गहनों की चमक,
कुछ खास है।
माना उनके परिधानों में,
कीमतों का नया व्यास है।
माना उनके आलीशान मकानों में,
विलासिता का क्रूर अट्टहास है।
पर हमारी भी मुस्कानों में,
झलकता आत्मविश्वास है।
हमारी नींदों में,
निश्चिंतता का बास है।
और हमारी नज़रों में,
एक बेहतर समाज की आस है।
—कुमार रौनक
कोसी की आस@सुपौल / पटना
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