मुस्लिमों के गढ़ होने का अंदाजा इस बात से भी लगाया जा सकता है 1957 में जब किशनगंज लोकसभा के लिए पहला चुनाव हुआ तब-से-आज तक में यदि 1967 (लखन लाल कपूर, पीएसपी) को छोड़ दिया जाए तो हरेक बार इस सीट पर मुस्लिम उम्मीदवार ने सफलता पाई है, भले ही वो किसी भी पार्टी से ताल्लुकात रखते हों।
जैसा कि आमतौर पर माना जाता है कि BJP को मुस्लिम वोट नहीं के बराबर मिलता है लेकिन 1999 में तात्कालीन BJP के युवा नेता सैयद शाहनवाज़ हुसैन ने सीमांचल के वरिष्ठ और प्रभावशाली नेता मुहम्मद तस्लीमुद्दीन, RJD को हराकर किशनगंज लोकसभा के लिए BJP का खाता खोला था। दुबारा वो हार गए, फिर उनकी सीट बदल दी गई और उनको किशनगंज लोकसभा के बजाय भागलपुर से उम्मीदवार बनाया गया था।
किशनगंज लोकसभा के अन्तर्गत आने वाले विधानसभा की स्थिति से अवगत होते हैं:-
1. बहादुरगंज – मो. तौशीफ आलम (काँग्रेस)
2. ठाकुरगंज – नौशाद आलम (जेडीयु)
3. किशनगंज – डॉ. मुहम्मद जावेद (काँग्रेस)
4. कोचाधमन – मुजाहिद आलम (जेडीयु)
विधानसभा की स्थिति देख वर्तमान चुनाव बराबरी का दिख रहा है लेकिन विधानसभा चुनाव के समय बिहार का चुनावी पृदृश्य वर्तमान हालत से बिल्कुल अलग था। कॉंग्रेस, राजद और जेडीयू तभी एक छतरी के नीचे अर्थात महागठबंधन के साथ थे और दूसरी ओर भाजपा, रालोसोपा और लोजपा। इस बार की तस्वीर कुछ बदली हुई सी है, जहाँ एक ओर महागठबंधन में कॉंग्रेस, राजद, रालोसोपा, नई-नई VIP पार्टी और HAM है, वहीं राजग में भाजपा, जेडीयु और लोजपा है।
अब बीते लोकसभा चुनाव 2014 की बात कर लेते है कॉंग्रेस और राजद के गठबंधन उम्मीदवार के रूप में काँग्रेस के मो असराउल हक (4,93,461 वोट) ने भाजपा के डॉ दिलीप कुमार जायसवाल (2,98,849 वोट) को लगभग 2 लाख वोटों से हराया, उक्त चुनाव में जेडीयू के अखतारूल इमान को महज़ 55822 वोट से संतोष करना पड़ा।
समय बदला, परिस्थिति बदली है और 2019 के प्रतिद्वंदी की तस्वीर भी बदल गई है। जहाँ काँग्रेस ने मो॰ जावेद पर विश्वास जताया है, तो राजग में किशनगंज लोकसभा जेडीयू के खाते में आने पर सैयद महमूद अशरफ को अपना उम्मीदवार बनाया ,है साथ ही अकबरुद्दीन ओवैसी के पार्टी AIMIM ने 2014 के जेडीयू के उम्मीदवार अखतारूल इमान को अपना उम्मीदवार बनाया है।
उपर्युक्त हालात को देखते हुये एक बात तो स्पष्ट हो गया है कि किशनगंज लोकसभा का परिणाम जाति-धर्म पर आधारित होने के भरपूर आसार हैं। हाँ, महत्वपूर्ण ये देखना रहेगा कि किस पार्टी या गठबंधन का समीकरण फिट और हिट हो पाया।
तीनों मुख्य उम्मीदवार मुस्लिम समुदाय से हैं, लेकिन काँग्रेस के मो॰ जावेद की जीत इस बात पर निर्भर करेगी कि मुस्लिम+यादव का वोट बँटे नहीं और जेडीयू के सैयद महमूद अशरफ की जीत इसके ठीक विपरीत इस बात पर निर्भर करेगी कि मुस्लिम वोट ज्यादा से ज्यादा बँटे क्योंकि श्री अशरफ यदि मुस्लिम वोट में सेंध लगाने में कामयाब हो गए तो बाँकी बीजेपी और मोदी का साथ उनकी नैया पार करा सकता है, साथ ही श्री अशरफ की जीत संभावना AIMIM के उम्मीदवार अखतारूल इमान को मिलने वाले वोटों की संख्या के आधार पड़ बढ़ती जाएगी।
कुल मिलाकर कहा जा सकता है कि यहाँ सीधा मुक़ाबला तो महागठबंधन और राजग के बीच है लेकिन AIMIM के उम्मीदवार भी खेल बनाने और बिगारने का काम कर सकते हैं लेकिन एक बात, जो तय वो यह है कि मुस्लिमों के गढ़ में यदि किसी की जीत होगी तो वो मुस्लिम ही होगा।
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