एक फकीर अरब में हज के लिए पैदल निकला। रात हो जाने पर एक गांव में शाकिर नामक व्यक्ति के दरवाजे पर रूका। शाकिर ने फकीर की खूब सेवा किया। दूसरे दिन शाकिर ने बहुत सारे उपहार देकर विदा किया। फकीर ने दुआ किया -“खुदा करे तू दिनों दिन बढता ही रहे।”
सुन कर शाकिर हंस पड़ा और कहा -“अरे फकीर! आज जो है यह भी नहीं रहने वाला है”। यह सुनकर फकीर चला गया।
दो वर्ष बाद फकीर फिर शाकिर के घर गया और देखा कि शाकिर का सारा वैभव समाप्त हो गया है। पता चला कि शाकिर अब बगल के गांव में एक जमींदार के यहाँ नौकरी करता है। फकीर शाकिर से मिलने गया। शाकिर ने अभाव में भी फकीर का स्वागत किया। झोपड़ी में फटी चटाई पर बिठाया। खाने के लिए सूखी रोटी दिया।
दूसरे दिन जाते समय फकीर की आखों में आँसू थे। फकीर कहने लगा- “अल्लाह, ये तूने क्या किया?”
शाकिर पुनः हंस पड़ा और बोला -“फकीर तू क्यों दुखी हो रहा है? महापुरुषों ने कहा है- “खुदा इन्सान को जिस हाल में रखे खुदा को धन्यावाद देकर खुश रहना चाहिए”। समय सदा बदलता रहता है, और सुनो यह भी नहीं रहने वाला है।
फकीर सोचने लगा -“मैं तो केवल भेष से फकीर हूँ किन्तु सच्चा फकीर तो शाकिर तू ही है।”
दो वर्ष बाद फकीर फिर यात्रा पर निकला और शाकिर से मिला तो देख कर हैरान रह गया कि शाकिर तो अब जमींदारों का जमींदार बन गया है। मालूम हुआ कि जिस जमींदार के यहाँ शाकिर नौकरी करता था, वह संतान विहीन था, मरते समय उसने अपनी सारी जायदाद शाकिर को दे गया।
फकीर ने शाकिर से कहा – “अच्छा हुआ वो जमाना गुजर गया। अल्लाह करे अब तू ऐसा ही बना रहे।”
यह सुनकर शाकिर फिर हंस पड़ा और कहने लगा – “फकीर! अभी भी तेरी नादानी बनी हुई है”।
फकीर ने पूछा क्या यह भी नहीं रहने वाला है? शाकिर ने उत्तर दिया “या तो यह चला जाएगा या फिर इसको अपना मानने वाला ही चला जाएगा, कुछ भी रहने वाला नहीं है और अगर शाश्वत कुछ है, तो वह हैं परमात्मा और इसका अंश आत्मा”। फकीर चला गया।
डेढ साल बाद फकीर जब लौटता है, तो देखता है कि शाकिर का महल तो है किन्तु कबूतर उसमें गुटरगू कर रहे हैं। शाकिर कब्रिस्तान में सो रहा है। बेटियां अपने-अपने घर चली गई है। बूढ़ी पत्नी कोने में पड़ी है।
“कह रहा है आसमां, यह समा कुछ भी नहीं।
रो रही है शबनमें, नौरंगे जहाँ कुछ भी नहीं।
जिनके महलों में हजारो रंग के जलते थे, फानूस।
झाड़ उनके कब्र पर, बाकी निशा कुछ भी नहीं।”
फकीर सोचता ह – “अरे इन्सान ! तू किस बात का अभिमान करता है? क्यों इतराता है? यहाँ कुछ भी टिकने वाला नहीं है, दुःख या सुख कुछ भी सदा नहीं रहता।”
तू सोचता है- “पड़ोसी मुसीबत में है और मैं मौज में हूँ। लेकिन सुन न मौज रहेगी और न ही मुसीबत। सदा तो उसको जानने वाला ही रहेगा।
“सच्चे इन्सान है वो, जो हर हाल में खुश रहते हैं।
मिल गया माल तो, उस माल में खुश रहते हैं।
हो गये बेहाल तो, उस हाल में खुश रहते है।”
धन्य है शाकिर तेरा सत्संग और धन्य हैं तुम्हारे सद्गुरु। मैं तो झूठा फकीर हूँ। असली फकीर तो तूँ और तेरी जिन्दगी थी।
अब मैं तेरी कब्र देखना चाहता हूँ। कुछ फूल चढ़ा कर दुआ तो मांग लूँ।
फकीर कब्र पर जाता है तो देखता है कि शाकिर ने अपनी कब्र पर लिखवा रखा है- आखिर यह भी तो नहीं रहेगा।
(यह कहानी whatapp से प्राप्त संदेश के संकलन पर आधारित है।)