पुरानी पेंशन स्कीम (OPS) के लिए अर्ध-सैनिक बल का हल्ला बोल

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वर्तमान स्थिति में भारतवर्ष में अर्ध-सैनिक बल हमेंशा युद्धरत रहती है, और-तो-और उसमें भी सीआरपीएफ़ (CRPF) का क्या कहना? फिर चाहे माओवादी से हो या आतंकवादी से। मैं तो समझता हूँ कि भारत वर्ष में अधिकांश युवा एक अदद नौकरी के लिए सेना या अर्ध-सैनिक बल में जाते हैं, अर्थात प्रथम गरीबी और नौकरी होने के बाद देशभक्ति का जज़्बा। बहुत ही साधारण परिवार से आने वाले अर्ध-सैनिक बल के ये जांबाज जवान भी कभी पीछे मुड़कर नहीं देखते।  ये भी लगभग सेना की तरह ही काम करते हैं फिर इन्हें अर्धसैनिक बल क्यों कहा जाता है? सरकार की अपनी अलग-अलग कैटेगरी होती है।  हम कभी नहीं सोचते कि अर्द्धसैनिक क्या है और सैनिक क्या?

आइये जानते हैं:-

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जब से पुलवामा अटैक हुआ है तब से एक बार फिर ज़ोर शोर से चर्चा हो रही है कि अर्धसैनिक बलों के लिए सरकार पुरानी पेंशन व्यवस्था लागू करेगी या नहीं? क्योंकि 2004 से अर्ध-सैनिक बल को न्यू-पेंशन स्कीम के तहत रख गया है।

भारत सरकार ने 01.01.2004 के बाद जॉइन करने वाले (सेना में आर्मी, नेवी और एयरफोर्स को छोड़कर) सभी कर्मचारियों (जिसमें अर्धसैनिक बल भी शामिल है) को पुरानी पेंशन स्कीम (OPS) के बजाय न्यू पेंशन स्कीम (NPS) के  अंतर्गत रखा गया है।

अब सवाल यह है कि क्या सीआरपीएफ़ (CRPF) या अन्य अर्धसैनिक बल सेना की तरह शिद्दत से काम नहीं करती?  आखिर क्या वजह रही होगी कि सरकार इन्हें पुरानी पेंशन स्कीम (OPS) के बजाय न्यू पेंशन स्कीम (NPS) के अंतर्गत क्यों रखा? सीआरपीएफ़ (CRPF) को रिजर्व पुलिस के रूप मे रखा जाता है। देश में जब कभी, कहीं भी संकट आती है, चाहे जिस रूप में हो बाढ़ आ गई हो, चाहे भूस्खलन हो गई हो, नकसलवाद हो या आतंकवाद हो, इन्हें तत्परता से इस्तेमाल किया जाता है। फिर सवाल यह है कि आखिर सरकार का ध्यान इस और क्यों नहीं जाता है? पेंशन एक ऐसी योजना है जो इन बहादुर जवानों के गुजरने के  बाद परिवार का एक मात्र सहारा होता है। हम आप किताबों में पढ़ते हैं, अच्छे-अच्छे आर्टिकल लिखते हैं, टेलिविजन पर देखते हैं कि आज वहाँ हमला हुआ, हमारे इतने जवान शहीद हो गये, फिर दो तीन दिनों तक सभी शोकसभा, केंडिल मार्च, और नेताओं के द्वारा रटा रटाया कि मेरी संवेदनाएं इन परिवार वालों के लिए है। पर साहब, जिनके परिवार से लोग शहीद होते हैं उन परिवार के बारे में एक बार कल्पना कर के देखिये, हिल जाइएगा। खैर चलिये आगे बढ़ते हैं।

2010 में भी माओवादियों ने घात लगाकर छत्तीसगढ़ के दांतेवाड़ा में सीआरपीएफ (CRPF) के 76 जवानों को मार दिया था । अर्द्ध सैनिक बल भी सैनिक की तरह हर मोर्चे पर जाता है। अभी हाल ही में जम्मू-कश्मीर के पुलवामा में हमारे सीआरपीएफ (CRPF) के 40 जवान शहीद हो गये।

दुख की  इस घड़ी में हमें जरा उनके परिवार के बारे में, उनके बच्चों के बारे में सोचना पड़ेगा। हमें हमारी सरकारों का भी इस तरफ ध्यान खींचना पड़ेगा या ध्यान केन्द्रित कराना पड़ेगा ताकि उनके परिवार के लिए कुछ इस तरह का किया जिससे उनको भी सेना की तरह पुरानी पेंशन स्कीम (OPS) का फाइदा हो सके।

हमारा शिकायत मीडिया से भी है। आज हमारी मीडिया भी वही दिखाती है जिससे उनको ज्यादा-से-ज्यादा फाइदा मिल सके, वो अपने चौथे-स्तम्भ वाले दायित्व को भूल चुकी है। यदि नहीं तो उसी मीडिया से सवाल है कि  13 दिसंबर को जब अर्ध सैनिक बल के हजारों पूर्व सैनिक अपनी मांगों को लेकर दिल्ली आए थे, यह मांगे उनकी भविष्य बेहतर कर सकते थे और उनके मनोबल को बढ़ाने की बहुत जरूरत थी तब यही मीडिया वाले एक कवरेज देने से नागवार ठहरे। यह वही मीडिया है, जब अपनी टीआरपी बढ़ानी होती है तो “कमांडर अभिनंदन” की वापसी के समय जरा भी अपनी जगह से हिली नहीं, एक भी शॉट मिस नहीं होने देना चाह रही थी, ऐसा अनेकों उदाहरण है लेकिन ये वही मेडिया है जो भूल जाती है कि जिन शहीदों या फिर इस तरह कि घटनाओं से अपनी टीआरपी बटोरती हैं उन्हीं के परिवार वाले जब पुरानी पेंशन स्कीम (OPS) के लिए सरकार से माँग करते हैं या फिर धरना देते हैं तो एक बार भी कवरेज नहीं देती शायद उन्हें लगता है कि इससे तो हमें कुछ खास फाइदा तो नहीं होगा।

हमलोग तो शहीद कहते हैं लेकिन सरकार इन्हें शहीद क्यों नहीं कहती? पूर्ण सैनिक की तरह लड़कर भी अपनी जान देने वाले इन अर्द्धसैनिक बालों के लिए सरकार ने 11 जुलाई 18 को दिल्ली हाई कोर्ट में हलफनामा दिया था कि अर्ध सैनिक बलों को शहीद का दर्जा नहीं दिया गया है। किसी भी न्यूज़ चैनल वालों के लिए ये टीआरपी बटोरने वाली खबर नहीं थी, इसलिए शायद उन्होने इसे नहीं दिखाया। उन्हें सोचना चाहिए कि शहीद या शहादत के बाद उनके परिवार का क्या होगा?

अर्धसैनिक बलों के संगठन के एक नेता ने कहा कि गुजरात में अर्ध सैनिक बलों के शहीदों के परिवार वालों को चार लाख क्यों मिलता है? दिल्ली में एक करोड़ क्यों? क्यों हरियाणा सरकार पचास लाख देती है? उन्होने कहा कि राज्यों के भीतर मुआवजे को लेकर भेदभाव क्यों? उन्होंने माँग किया कि सहायता राशि के लिए एक नोटिफिकेशन होनी चाहिए।

आज फिर अर्ध सैनिक बलों के संगठन 3 मार्च को जंतर-मंतर आए हैं। आज देर रात तक भी इंतजार कर देखते हैं कि दो दिन पहले तक शहीदों के नाम पर दिनभर खबर देने वाली मीडिया को इनके हक की बात करने के लिए कितना समय मिलता है।

Pic  Source- Times of India

 

आशुतोष सिंह

(यह लेखक के स्वतंत्र विचार हैं, इससे “कोसी की आस टीम” का सहमत होना आवश्यक नहीं है। )

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टीम- “कोसी की आस” ..©

 

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