शिक्षक दिवस स्पेशल— होनहार गरीब को तराशकर नगमा बनाते, ये पाँच गुरु।

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शिक्षक दिवस के अवसर पर गरीब परिवार से आने वाले होनहार बच्चे या फिर यूँ कहें कि गुदड़ी के लालों को तराशकर हीरा बनाते बिहार के सुप्रसिद्ध पाँच गुरु के बारे में आज हम बताने जा रहे हैं, ये सभी गुरु आज किसी पहचान के मुहताज नहीं। इन गुरु ने अपने-अपने तरीके से अबतक सैकड़ों प्रतिभा के सपने को न सिर्फ पंख लगाया है बल्कि बिहार का नाक भी काफी ऊँचा कर दिया है।

केसी सिन्हा : —-

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कभी मैथ में हुए थे फेल,  आज इनकी किताब से पढ़ाते हैं शिक्षक

यह बात जानकर आपको आश्चर्य होगा कि कैलकुलस और अलजेब्रा जैसी किताबें लिखने वाले केसी सिन्हा गणित में फेल हो गए थे। यह बात तबकी है, जब वह बचपन में अपने आगे की पढ़ाई करने के लिए जिला स्कूल आरा में प्रवेश परीक्षा देने गए थे।

पहली बार में असफल होने के बाद वे दूसरी बार मेहनत कर प्रवेश परीक्षा पास कर गए। वे कहते हैं, फेल होने वाली बात मेरे जीवन के लिए सबसे बड़ी टर्निंग प्वाइंट साबित हुई। गणित में फेल होने की बात दिल पर लग गई। आज 60 से अधिक किताबें लिख चुके केसी सिन्हा बताते हैं कि शुरुआत में क्लास में मेरी रैंक अच्छी नहीं आती थी लेकिन फिर अथक मेहनत से मैंने अपनी रैंकिंग सुधारी।

महज 28 वर्ष की उम्र में कैलकुलस से प्रसिद्धि पाने वाले केसी सिन्हा ने उन कठिनतम सवालों को अपने किताब का आधार बनाया जिसमें वह फंसते थे। श्री सिन्हा बताते हैं कि बच्चों के मनोविज्ञान को समझते हुए पढ़ाता हूँ। मेरी किताबों की भी यही खासियत है, इसमें स्टूडेंट की क्वेरी के हिसाब से चैप्टर बने हैं। इसने उन्हें इतनी बड़ी कामयाबी दिलाई की आज भी मैथ्स में सफलता पाने के लिए हर छात्र को यही सीख दी जाती है कि केसी सिन्हा की किताब पढ़ो।

अभी वह पटना साइंस कॉलेज के प्रिंसिपल है। श्री सिन्हा बताते हैं कि वह ग्रामीण छात्रों को पढ़ाने के लिए वीडियो लेक्चर भी देते हैं। गांव में चूंकि कोई सुविधा नहीं है, इसलिए वहां के बच्चों से जुडऩा चाहते हैं और गरीब बच्चों को पढ़ाना चाहते हैं।

आनंद कुमार—-

शिक्षा के क्षेत्र में पटना के आनंद कुमार और उनकी संस्था सुपर 30 को कौन नहीं जानता। हर साल आईआईटी रिजल्ट्स के दौरान उनके ‘सुपर 30’ की चर्चा अखबारों में खूब-सुर्खियाँ बटोरती हैं। आनंद कुमार अपने इस संस्था के जरिए गरीब मेधावी बच्चों के आईआईटी में पढ़ने के सपने को हकीकत में बदलते हैं। सन् 2002 में आनंद सर ने सुपर 30 की शुरुआत की और तीस बच्चों को नि:शुल्क आईआईटी की कोचिंग देना शुरु किया। पहले ही साल यानी 2003 की आईआईटी प्रवेश परीक्षाओं में सुपर 30 के 30 में से 18 बच्चों को सफलता हासिल हो गई। उसके बाद 2004 में 30 में से 22 बच्चे और 2005 में 26 बच्चों को सफलता मिली।

इसीप्रकार उनकी संस्था की सफलता का ग्राफ लगातार बढ़ता गया। सन् 2008 से 2010 तक सुपर 30 का रिजल्ट सौ प्रतिशत रहा। आनंद कुमार अबतक कई राष्ट्रीय व अंतराष्ट्रीय मंचों को संबोधित कर चुके हैं। उनके सुपर 30 की चर्चा विदेशों तक फैल चुकी है। कई विदेशी विद्वान उनका इंस्टीट्यूट देखने आते हैं और आनंद कुमार की कार्यशैली को समझने की कोशिश करते हैं। हाल ही में आनंद कुमार को विश्व के प्रतिष्ठित विश्विद्यालय ने अपने यहाँ लेक्चर के लिए बुलाया है। आज आनंद कुमार का नाम पूरी दुनिया जानती है और इसमें कोई शक नहीं कि आनंद कुमार बिहार के गौरव हैं।

 

आरके श्रीवास्तव:—

चुटकले सुनाकर खेल-खेल में पढ़ाते हैं गणित

 

गणित के मशहूर शिक्षक मैथमेटिक्स गुरु फेम आरके श्रीवास्तव जादुई तरीके से गणित पढ़ाने के लिए जाने जाते हैं। उनकी पढ़ाई की खासियत है कि वह बहुत ही स्पष्ट और सरल तरीके से समझाते हैं। सामाजिक सरोकार से गणित को जोड़कर, चुटकुले बनाकर सवाल हल करना आरके श्रीवास्तव की पहचान है। गणित के लिये इनके द्वारा चलाया जा रहा निःशुल्क नाईट क्लासेज अभियान पूरे देश मे चर्चा का विषय बना हुआ है। पूरे रात लगातार 12 घण्टे स्टूडेंट्स को गणित का गुर सिखाना कोई चमत्कार से कम नही। इस क्लास को देखने और उनका शैक्षणिक कार्यशैली को समझने के लिए कई विद्वान इनका इंस्टीटूट देखने आते है। नाईट क्लासेज अभियान हेतु स्टूडेंट्स को सेल्फ स्टडी के प्रति जागरूक करने और गणित को आसान बनाने के लिए यह नाईट क्लासेज अभियान अभिभावकों को खूब भा रहा। स्टूडेंट्स के अभिभावक इस बात से काफी प्रसन्न दिखते है कि मेरा बेटा-बेटी जो ठीक से घर पर पढ़ने हेतु 3-4 घण्टे भी नही बैठ पाते, उसे आरके श्रीवास्तव ने पूरे रात लगातार 12 घण्टे पूरे कंसंट्रेशन के साथ गणित का गुर सिखाया। आपको बताते चले कि अभी तक आरके श्रीवास्तव के द्वारा 200 क्लास से अधिक बार पूरे रात लगातार 12 घण्टे स्टूडेंट्स को निःशुल्क गणित की शिक्षा दी जा चुकी है जो आगे जारी भी है। वैसे आरके श्रीवास्तव का प्रतिदिन क्लास में तो स्टूडेंट्स गणित का गुर सीखते ही है परंतु यह स्पेशल नाईट क्लासेज प्रत्येक शनिवार  को लगातार 12 घण्टे बिना रुके चलता है। इसके लिए आरके श्रीवास्तव का नाम वर्ल्ड बुक ऑफ रिकार्ड्स, एशिया बुक ऑफ रिकार्ड्स, इंडिया बुक ऑफ रिकार्ड्स में दर्ज हो चुका है। आरके श्रीवास्तव गणित बिरादरी सहित पूरे देश मे उस समय चर्चा में आये जब इन्होंने क्लासरूम प्रोग्राम में बिना रुके पाइथागोरस थ्योरम को 50 से ज्यादा अलग-अलग तरीके से सिद्ध कर दिखाया। आरके श्रीवास्तव ने कुल 52 अलग अलग तरीको से पाइथागोरस थ्योरम को सिद्ध कर दिखाया। जिसके लिए इनका नाम वर्ल्ड बुक ऑफ रिकार्ड्स लंदन में दर्ज चुका है। वर्ल्ड बुक ऑफ रिकार्ड्स लंदन  के छपी किताब में यह जिक्र भी है कि बिहार के आरके श्रीवास्तव ने बिना रुके 52 विभिन्न तरीकों से पाइथागोरस थ्योरम को सिद्ध कर दिखाया। इसके लिए ब्रिटिश पार्लियामेंट के सांसद वीरेंद्र शर्मा ने आरके श्रीवास्तव को इनके उज्ज्वल भविष्य के लिए बधाई एवं शुभकामनाये भी दिया। इसके अलावा आरके श्रीवास्तव संख्या 1 क्या है, पर शैक्षणिक सेमिनार में घण्टो भाषण देकर अपने प्रतिभा से बिहार को गौरवान्वित कराया।

आरके श्रीवास्तव गणित के हौवा या डर होने की बात को नकारते हैं। वे कहते हैं कि यह विषय सबसे रुचिकर है। इसमें रुचि जगाने की आवश्यकता है। अगर किसी फॉर्मूला से आप सवाल को हल कर रहे हैं तो उसके पीछे छुपे तथ्यों को जानिए। क्यों यह फॉर्मूला बना और किस तरह आप अपने तरीके से इसे हल कर सकते हैं। वे बताते हैं कि उन्हें बचपन से ही गणित में बहुत अधिक रुचि थी, जो नौंवी और दसवी तक आते-आते परवान चढ़ी।

आरके श्रीवास्तव अपने पढ़ाई के दौरान टीबी की बीमारी के चलते आईआईटी प्रवेश परीक्षा नही दे पाये थे। उनकी इसी टिस ने बना दिया सैकड़ो स्टूडेंट्स को इंजीनयर। आर्थिक रूप से गरीब परिवार में जन्मे आरके श्रीवास्तव का जीवन भी काफी संघर्ष भरा रहा। आरके श्रीवास्तव सिर्फ 1 रुपया गुरु दक्षिणा लेकर पढ़ाते है गणित, प्रत्येक अगले वर्ष 1 रुपया अधिक लेते है गुरु दक्षिणा।सैकड़ो आर्थिक रूप से गरीब स्टूडेंट्स को आईआईटी, एनआईटी, बीसीईसीई में सफलता दिलाकर बना चुके है इंजीनियर। श्री श्रीवास्तव कहते हैं कि  मुझे लगा कि मेरे जैसे देश के कई बच्चे होंगे जो पैसों के अभाव में पढ़ नहीं पाते।

आरके श्रीवास्तव अपने छात्रों में एक सवाल को अलग-अलग मेथड से हल करना भी सिखाते हैं। वे सवाल से नया सवाल पैदा करने की क्षमता का भी विकास करते हैं। रामानुजन, वशिष्ठ नारायण को आदर्श मानने वाले आरके श्रीवास्तव कहते हैं कि विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी के युग में गणित की महत्ता सबसे अधिक है इसलिए इस विषय को रुचिकर बनाकर पढ़ाने की आवश्यकता है।

अभयानंद :—-

इन्होंने न तो पढ़ाने के लिए बीएड-एमएड की डिग्री ली है और न ही वह प्रोफेशनल शिक्षक हैं लेकिन इनके पढ़ाने का तरीका छात्रों को खूब पसंद है। यह शख्यिसत हैं, 1977 बैच के आइपीएस अधिकारी और बिहार के पूर्व डीजीपी अभ्यानंद। वह बताते हैं कि डीजीपी रहते हुए, उन्होंने राज्य के कई गांव के दौरे किए जिसमें वह कई ऐसे बच्चों से मिले जिन्होंने स्कूल का मुंह तक नहीं देखा था।

उनसे इस तरह के सवाल पूछे जिन्हें 7-8 क्लास के बच्चे फॉर्मूले से हल कर सकते थे लेकिन उन बच्चों ने मुंहजबानी ही सवाल बना दिया। वह बताते हैं कि गणित, विज्ञान ऐसा ही विषय है जिसमें तार्किक क्षमता का विकास जरूरी है न कि फॉर्मूले रटवाने की। यूं तो वह फिजिक्स के शिक्षक माने जाते हैं, लेकिन जिसकी पकड़ फिजिक्स पर होती है, गणित उनका सबसे पसंदीदा विषय हुआ करता है।

वे कहते हैं कि  रटे रटाए फॉर्मूले से कभी गणित नहीं आ सकती। मैं छात्रों को कभी सवाल का हल नहीं बताता हूं उन्हें हल करने के लिए देता हूं। बोर्ड पर गणित पढ़ाने से आप गणित के फार्मूले को रट्टा तो मार सकते लेकिन इससे आप गणित नहीं जान पाएंगे।

इसके लिए मानसिक क्षमता का विकास करवाना ज्यादा जरूरी है। सोचने की क्षमता जब विकसित होगी तो वह सवाल खुद-ब-खुद बनने लगेंगे। मूल रूप से गया के रहने वाले अभ्यानंद अभी अभ्यानंद सुपर-30 का संचालन कर रहे हैं जिसमें आइआइटी-जेइई की तैयारी करवाई जाती है। सैकड़ो गरीब प्रतिभा को अबतक बना चुके आईआईटियन, एनआइटीयन।

सगीर अहमद : —-

खेल-खेल में पढ़ाते हैं, गणित, इनके किताब से पढ़कर हजारो स्टूडेंट्स कर रहे सरकारी नौकरी।

अगर आपको कहा जाए कि गणित एक खेल है तो आपको शायद अटपटा लगे लेकिन सगीर अहमद ऐसे ही शिक्षक हैं जो खेल-खेल में गणित पढ़ाते हैं। प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी कराने वाले सगीर अहमद की किताबें महत्वपूर्ण मानी जाती हैं।

रेलवे, एसएससी सहित सभी तरह की प्रतियोगी परीक्षाओं के लिए वह गणित पढ़ाते हैं। उनकी पढ़ाई की खासियत है कॉन्सेप्ट स्टडी। इसमें वह बेसिक कॉन्सेप्ट सुलझाते हुए सवाल बताते हैं। वे कहते हैं कि गणित न ही बोरियत भरा विषय है और ना ही कठिन।

अगर इसे अच्छे तरीके से समझा जाए तो यह एक गेम की तरह है। रामानुजन को याद करते हुए उन्होंने कहा कि छात्रों को उनके जीवन से प्रेरणा लेकर गणित में रुचि दिखानी चाहिए। रुचि लेकर पढ़ेंगे तो गणित आपका साथी बन जाएगा।

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