राजेश कुमार सहरसा…
जिले में कई ऐतिहासिक, सांस्कृतिक, पुरातात्विक एवं धार्मिक महत्व के स्थल है जिसको पर्यटन स्थल के रूप में विकसित किया जा सकता है। लेकिन सरकार की अनदेखी के कारण यह इलाका आज भी उपेक्षित है। जिले में कन्दाहा सुर्य मंदिर, मंडन धाम, उग्रतारा मंदिर, नकूचेश्वर महादेव मंदिर, मटेश्वरनाथ महादेव मंदिर, कात्यायनी स्थान, विराटपुर भगवती स्थान, नयानगर स्थित भगवती स्थान, नीलकंठ महादेव, देवनवन महादेव मंदिर, देवना गोपाल, महान संत लक्ष्मी नाथ गोसाईं कुटी बनगाउँ, विद्यापति सांस्कृतिक परिसर लक्छमिनिया, मत्सयगंधा रक्तकाली चौसठ योगिनी मंदिर तथा सिंघेश्वर स्थान प्रमुख हैं। हालांकि पूर्ववर्ती सरकार ने पर्यटन स्थलों को सूचीबद्ध कर विकसित करने का बीड़ा उठाया गया था, लेकिन सरकार बदलते ही इस योजना को ठंढे बस्ते में डाल दिया गया। जबकि इस क्षेत्र में टूरिज्म को बढ़ावा देने से स्थानीय लोगों को रोजगार भी काफी विकसित हो सकती है। खासकर उपरोक्त स्थलों को विकसित करने के लिए अच्छी सड़कों का होना आवश्यक है, साथ-ही-सभी प्रमुख स्थलों पर पर्यटकों के लिए ठहरने का समूचित प्रबंध आवश्यक है लेकिन इतने धार्मिक व ऐतिहासिक महत्त्व के स्थलों पर पर्यटकों के लिए कोई सुविधा उपलब्ध नहीं है। हालांकि सरकार सांस्कृतिक चेतना को जगाने के लिए उग्रतारा महोत्सव एवं कोशी महोत्सव के नाम पर लाखों खर्च करती है किन्तु धार्मिक महत्व के धरोहरो के रखरखाव एवं विकसित करने की दिशा में सरकारी उदासीनता स्पष्ट देखी जा सकती है।
कन्दाहा सुर्य मंदिर की ऐतिहासिकता इस बात से प्रमाणित होती हैं कि भगवान कृष्ण के पुत्र को कुष्ठ रोग से निजात दिलाने के लिए यह मंदिर स्थापित की गई थी, जहाँ आज भी ऐतिहासिक सुर्य की प्रतिमा विराजमान है। साथ ही कन्दाहा सुर्य मंदिर स्थित कुँए का जल कई गंभीर बीमारियों से छुटकारा दिलाती है। उसी प्रकार महान संत लक्ष्मी नाथ गोसाईं जो सिद्ध महापुरुष के रूप में अवतरित हुए और उन्होंने जीवन पर्यंत मानवता की सेवा की। उनके द्वारा प्रयुक्त खडाऊं की आज भी पूजा होती हैं और भक्तों की ऐसी मान्यता है कि मंदिर के गर्भगृह में रखे खटिया पर बाबाजी आज भी श्यन करते हैं जिसका प्रमाण रोज सबेरे बिछाये गये चादर पर सिलवटें देखीं जाती हैं। वहीं त्रिकोण पर स्थापित उग्रतारा, कात्यायनी और विराटपुर भगवती स्थान स्थापित है जहाँ आज भी तंत्र-मंत्र सिद्ध साधना स्थली बनी हुई है। उसी प्रकार श्रृंगी ऋषि ने अयोध्या के राजा दशरथ को पुत्रेष्टी यज्ञ कराया जहाँ आज भी सिहेंश्वर महादेव मंदिर विद्यमान हैं। उसी प्रकार मंडन धाम जहाँ आदि शंकराचार्य ने मंडन मिश्र से शास्त्रार्थ किया और विदुषी भारती ने शंकराचार्य को शास्त्रार्थ में परास्त किया था, जिसके प्रमाण कण-कण में आज भी विद्यमान हैं। संस्कार भारती के प्रदेश मंत्री धनंजय कुमार खां ने कहा कि सरकार यदि कोशी इलाके के चप्पे-चप्पे पर बिखरे पर्यटन स्थलों के विकास पर ध्यान दे तो क्षेत्र में ही अधिक-से-अधिक रोजगार के अवसर प्राप्त हो सकते हैं।